लगातार पेट दर्द और खून के थक्के जमना हो सकते हैं पैंक्रियास कैंसर के प्रारम्भिक लक्षण
इंदौर। कैंसर को सबसे घातक रोगों की में सूची सबसे पहले गिना जाता है। हर साल दुनियाभर में लाखों लोगों की मौत कैंसर के कारण हो जाती है। कैंसर कई प्रकार का होता है, इसमें भी पैंक्रियास कैंसर (पैंक्रियास का कैंसर) को सबसे घातक माना जाता है। इस जानलेवा रोग का अगर समय पर निदान कर लिया जाए तो इलाज और रोगी की जान बचाना अपेक्षाकृत आसान हो सकता है। इसकी पहचान करने के लिए इसको लक्षणों को जानना बेहद आवश्यक है। पैंक्रियास कैंसर के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए नवंबर को पैंक्रियाटिक कैंसर अवेयरनेस मंथ और इस महीने के तीसरे गुरुवार को वर्ल्ड पैंक्रियाटिक कैंसर डे के रूप में मनाया जाता है, ताकि इसके लक्षणों की पहचान कर समय पर उपचार उपलब्ध कराया जा सके।
इंदौर के शैल्बी मल्टी स्पेशलिटी हॉस्पिटल के कैंसर रोग विशेषज्ञ मेडिकल ऑन्कोलॉजिस्ट डॉ एसपी श्रीवास्तव के अनुसार, “पैंक्रियास कैंसर वैश्विक स्तर पर अपेक्षाकृत दुर्लभ कैंसर है, लेकिन यह बहुत जानलेवा है। पैंक्रियास कैंसर वयस्कों और वृद्धों में आम है और इसका खतरा उम्र के साथ बढ़ता है। महिलाओं की तुलना में पुरुषों में पैंक्रियास कैंसर विकसित होने की संभावना थोड़ी अधिक होती है। धूम्रपान पैंक्रियास कैंसर का एक महत्वपूर्ण जोखिम कारक है। धूम्रपान न करने वालों की तुलना में धूम्रपान करने वालों को अधिक जोखिम होता है। इसके अलावा पैंक्रियास कैंसर या कुछ आनुवंशिक सिंड्रोम (जैसे बीआरसीए1, बीआरसीए2, या लिंच सिंड्रोम) के पारिवारिक इतिहास वाले व्यक्तियों में इस कैंसर के होने की संभावना बढ़ जाती है। पैंक्रियास की लंबे समय तक सूजन इस कैंसर का जोखिम दुगना कर देती है। इसके अलावा मधुमेह, मोटापा, लाल मांस की अधिकता फलों और सब्जियों के सेवन में कमी, और निदान में देरी भी पैंक्रियास कैंसर के जोखिमों को बढाता है।
लक्षण:
- पेट दर्द: ऊपरी पेट या पीठ में दर्द एक सामान्य लक्षण है। यह लगातार या रुक-रुक कर हो सकता है।
- वजन घटना: अकारण वजन में कमी और भूख में कमी हो सकती है क्योंकि पैंक्रियास कैंसर पाचन को प्रभावित करता है।
- पीलिया: ट्यूमर द्वारा पित्त नली में रुकावट के कारण त्वचा और आंखों में पीलापन आ सकता है।
- मल में परिवर्तन: कम पैंक्रियास एंजाइम उत्पादन के कारण मल हल्के रंग का या चिकना हो सकता है।
- मधुमेह की शुरुआत: पैंक्रियास का कैंसर इंसुलिन उत्पादन को प्रभावित कर सकता है, जिससे मधुमेह हो सकता है।
- पाचन संबंधी समस्याएं: मतली, उल्टी और भोजन पचाने में कठिनाई हो सकती है।
- थकान: सामान्य कमजोरी और थकान महसूस हो सकती है।
उपचार के विकल्प:
- सर्जरी: ट्यूमर को सर्जिकल रूप से हटाना कुछ रोगियों के लिए एक विकल्प हो सकता है, खासकर जब कैंसर फैला नहीं है।
- कीमोथेरेपी: इसमें कैंसर कोशिकाओं को मारने या उनकी वृद्धि को रोकने के लिए दवाओं का उपयोग शामिल है। इसका उपयोग अक्सर सर्जरी से पहले या बाद में किया जाता है।
- रेडियेशन: उच्च-ऊर्जा किरणों का उपयोग कैंसर कोशिकाओं को लक्षित करने और मारने के लिए किया जाता है। इसका उपयोग सर्जरी या कीमोथेरेपी में किया जा सकता है।
- टारगेट थेरेपी: टारगेट दवाएं कैंसर कोशिकाओं में विशिष्ट असामान्यताओं को टारगेट करती हैं और इन्हें कीमोथेरेपी के साथ संयोजन में उपयोग किया जा सकता है।
- इम्यूनोथेरेपी: यह उपचार इम्यून सिस्टम को कैंसर कोशिकाओं को पहचानने और उन पर हमला करने में मदद करता है।
शैल्बी मल्टी स्पेशलिटी हॉस्पिटल के ऑन्कोसर्जन डॉ नयन गुप्ता ने बताया, “पैंक्रियाटिक कैंसर पैंक्रियास में होने वाली जानलेवा बीमारी है। पैंक्रियास का काम एंजाइम छोड़ना होता है, जो पाचन में मदद करता है। साथ ही उन हार्मोन को पैदा करता है, जो आपके ब्लड शुगर को कंट्रोल रखने में मदद करता है। पैंक्रियाटिक कैंसर में कैंसर कोशिकाएं अग्न्याशय या उसके आसपास अनियंत्रित रूप से बढ़ने लगती हैं तो वहां ट्यूमर का निर्माण हो जाता है। यह कैंसर न केवल उपचार एवं निदान में जटिल है बल्कि इसमें दर्द भी असहनीय होता है। पैंक्रियाटिक कैंसर में रोगियों को शरीर के कई हिस्सों में दर्द की समस्या हो सकती है। वैसे तो शरीर में दर्द बेहद ही आम है लेकिन कुछ हिस्सों में लंबे समय तक बना रहने वाला दर्द पैंक्रियास कैंसर का संकेत हो सकता है। जैसे कि पेट में होने वाले दर्द के कई कारण हो सकते हैं, हर दर्द को कैंसर का संकेत नहीं माना जा सकता है। हालांकि यदि यह दर्द लम्बे समय तक बना रहे और साथ ही दर्द अक्सर पेट से पीठ तक बढे तो यह पैंक्रियाटिक कैंसर का संकेत माना जा सकता है। इसके अलावा पीठ दर्द की दिक्कत, त्वचा में खुजली, वजन कम होना और लम्बे समय तक पीलिया की दिक्कत, जी मिचलाना और उल्टी जैसी समस्या भी पैंक्रियाटिक कैंसर के प्रारम्भिक लक्षण हैं। यदि पहली स्टेज पर इसका पता चल जाए तो इसका शत प्रतिशत उपचार संभव है। लेकिन पैंक्रियाटिक कैंसर का संकेत तब तक नहीं दिखता जब तक यह दूसरे हिस्सों में न फैलने लगे। इस कैंसर में खून हाइपर-कॉग्युलेटिव स्टेज में पहुंच जाता है, जहां खून के थक्के जमने लगते हैं। नसों में खून का थक्का जमने की स्टेज को डीप वेन थ्राम्बोसिस (DVT) कहा जाता है। कुछ मामलों में ये ब्लड क्लॉट लंग्स तक भी पहुंच सकते हैं, जिस कारण सांस लेने में कठिनाई हो सकती है। इस स्थिति को पल्मोनरी एंबॉलिज्म (PE) कहा जाता है और इससे मौत का जोखिम भी बढ़ सकता है। यूरोपीय कैंसर पैशेंट कोअलिशन (ईसीपीसी) के मुताबिक, मरीजों में जागरुकता की कमी के कारण DVT का खतरा बढ़ रहा है। DVT, पैंक्रियाटिक कैंसर को बेहद मुश्किल बना देता है। शरीर में पैंक्रियास की स्थिति के कारण बायोप्सी में भी काफी परेशानी होती है। इसलिए पहली स्टेज में ही प्रारम्भिक लक्षणों को नजरंदाज न करते हुए डॉक्टर की सलाह लें।“