डॉक्टर्स डे पर गर्भवेदा के डॉक्टर्स को मिला खास सम्मान

डॉक्टर्स डे पर जहाँ देशभर में चिकित्सकों का सम्मान किया जा रहा है, वहीं एक खास धन्यवाद गर्भवेदा की विशेषज्ञ टीमको मिला है, जिन्होंने न केवल एक असंभव माने गए दंपति को मातृत्व का सुख दिलाया, बल्कि उम्मीद की लौ को फिर से जलाया। मध्यप्रदेश के दंपति की कहानी हाल ही में चिकित्सा जगत के लिए प्रेरणा बन गई है। कई असफल आई.वी.एफ. (IVF) प्रयासों, क्रोमोसोमल असमानताओं, शुक्राणु की खराब गुणवत्ता और अधिक वजन जैसी कई जटिलताओं के बावजूद, इस दंपति ने बिना किसी चिकित्सकीय हस्तक्षेप के प्राकृतिक रूप से संतान को जन्म दिया, कमलेश और नीलम (बदले हुए नाम) लगभग सभी पारंपरिक उपचारों की असफलता देख चुके थे।आई.वी.एफ. के अनेक प्रयासों के बावजूद, भ्रूण विकसित नहीं हो पाता था। डॉक्टरों ने स्पष्ट रूप से कह दिया था कि बिना डोनर एग और आई.वी.एफ. के गर्भधारण असंभव है। इसके अलावा, महिला का वजन 110 किलोग्राम से अधिक था और दोनों को जटिल क्रोमोसोमल समस्याएँ थीं। एक बार गर्भ ठहरने के बावजूद, गर्भपात हो गया क्योंकि भ्रूण में भी वही समस्याएँ दोहराई गईं।

इस चुनौतीपूर्ण स्थिति में किसी परिचित ने उन्हें गर्भ वेदा का सुझाव दिया, जहाँ उन्हें तीन महीने की विशिष्ट प्रजनन पंचकर्म चिकित्सा और व्यक्तिगत रूप से तैयार की गई आयुर्वेदिक औषधियाँ दी गईं। उपचार के बाद न केवल उनके शारीरिक लक्षण सुधरे, बल्कि मानसिक तनाव में भी कमी आई और शरीर गर्भधारण के लिए पूर्णतः तैयार हो गया। तीन महीने के भीतर महिला ने प्राकृतिक रूप से गर्भधारण किया। गर्भावस्था नौ महीनों तक सामान्य रही और प्रसव के समय महिला का वजन 116 किलोग्राम होने के बावजूद कोई जटिलता नहीं हुई। आज यह दंपति एक स्वस्थ शिशु के साथ एक नई शुरुआत कर रहा है।

कमलेश और नीलम (बदले हुए नाम) ने गर्भवेदा के डॉक्टर्स को भावुक होकर धन्यवाद देते हुए कहा, “हमने लगभग सारी उम्मीदें छोड़ दी थीं। IVF के कई प्रयास विफल हो चुके थे, डॉक्टर्स कह चुके थे कि बिना डोनर एग के गर्भधारण असंभव है। लेकिन गर्भवेदा के डॉक्टर्स ने न केवल हमें सुना, समझा, बल्कि हमें पूरी तरह से एक नया जीवन दिया। आज हम एक स्वस्थ बच्चे के माता-पिता हैं – वो भी बिना किसी आधुनिक हस्तक्षेप के, सिर्फ आयुर्वेद की ताकत से।”

गर्भवेदा की प्रसूति एवं स्त्री रोग विशेषज्ञ एवं इंफर्टिलिटी स्पेशलिस्ट डॉ. मोनिका चौधरी मरेठिया बताती हैं, “यह मामला एक ऐसे दंपति का था जो कई बार आई.वी.एफ. असफल होने, क्रोमोसोमल असमानताओं, खराब शुक्राणु गुणवत्ता और महिला के अत्यधिक वजन जैसी गंभीर जटिलताओं से जूझ रहा था। आधुनिक चिकित्सा की दृष्टि से इसे ‘पुअर प्रोग्नोसिस’ माना जा रहा था, और उन्हें स्पष्ट रूप से कहा गया था कि बिना डोनर एग और चिकित्सकीय हस्तक्षेप के गर्भधारण असंभव है। जब यह दंपति हमारे पास आया, तो हमने सबसे पहले उनके जीवनशैली, आहार और मानसिक स्थिति को समझा। फिर तीन महीने की प्रजनन पंचकर्म चिकित्सा दी गई, जिसमें मात्रा बस्ती, उत्तरबस्ती, नस्य, अभ्यंग, और स्वेदन जैसे नैदानिक उपचार शामिल थे। इसके साथ ही विशेष आयुर्वेदिक औषधियाँ दी गईं, जो हार्मोनल असंतुलन, शुक्राणु गुणवत्ता और डिंबग्रंथि की स्वास्थ्य पर लक्षित थीं। इस चरणबद्ध उपचार से उनके शरीर की गहराई से शुद्धि हुई, मानसिक तनाव घटा और प्रजनन तंत्र को पुनर्संतुलित किया गया। हमारा उद्देश्य केवल गर्भधारण नहीं था, बल्कि पूरे प्रणाली को प्राकृतिक रूप से तैयार करना था।”

गर्भवेदा के मेल इंफर्टिलिटी स्पेशलिस्ट विशेषज्ञ डॉ. सुनील मरेठिया बताते हैं कि, “जब किसी मामले में आई.वी.एफ. बार-बार असफल होता है, क्रोमोसोमल असमानता होती है, और डोनर एग से भी परिणाम नहीं मिलते, तो इसे आधुनिक चिकित्सा ‘पुअर प्रोग्नोसिस’ मानती है। लेकिन आयुर्वेद समस्या को केवल जैविक नज़रिए से नहीं देखता। हम शरीर के ‘बीज’ (शुक्राणु और अंडाणु), ‘क्षेत्र’ (गर्भाशय), ‘अंबु’ (हार्मोनल संतुलन), और ‘काल’ (शरीर की अवस्था) — इन चार कारकों का गहराई से विश्लेषण करते हैं। इस दंपति के मामले में हमने शरीर को पुनःसंरचित करने के लिए क्रमिक पद्धति अपनाई: पहले शुद्धिकरण, फिर लक्षित औषधोपचार, और अंत में मानसिक संतुलन। नतीजा यह रहा कि जहाँ कोई उम्मीद नहीं थी, वहाँ जीवन का संचार हुआ और वह भी पूर्णतः प्राकृतिक रूप से।आज वे एक सामान्य जीवन जी रहे हैं।”

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