बच्चे गुस्सैल हो गए हैं तो रेड जोन, उदास है तो ब्लू जोन

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इंदौर :कोविड काल में बच्चों की मनःस्थिति पर पड़े प्रभाव और उसकी वजह से उत्पन्न हुई व्यवहारिक समस्याओं से निपटने के गुर सिखाने के लिए मंगलवार को शहर में एक दिवसीय पेरेंट्स काउंसलिंग वर्कशॉप का आयोजन किया गया था। यह कार्यशाला द मदर्स ब्लॉसम्स इंटरनेशनल स्कूल में मेलबर्न, ऑस्ट्रेलिया की बाल मनोविज्ञान विशेषज्ञ अन्वी चौहान द्वारा ली गई। कार्यशाला में शहर के उन माता-पिता ने भाग लिया जिनके बच्चे स्कूल जाने की उम्र में है। 3 घंटे चली कार्यशाला में लोगों को यह समझाया गया की कोविड काल का प्रभाव बच्चों पर किस प्रकार पड़ा है।

चाइल्ड डिवेलपमेंट काउंसलर और पीडियाट्रिक ऑक्यूपेशनल थेरेपिस्ट अन्वी चौहान ने कहा कि बच्चों की मनःस्थिति को समझने के लिए माता-पिता को सबसे पहले उनके व्यवहार को उनके व्यक्तित्व से अलग करना होगा। उन्होंने बताया कि बच्चे का व्यवहार उसकी पहचान नहीं है।

साथ ही उन्होंने बताया कि यदि बच्चे व्यावहारिक परेशानी का सामना कर रहे हैं तो उनके व्यवहार को चार जोन में बांटा जा सकता है – रेड जोन जिसमें बच्चे उग्र हो जाते है और अत्यधिक बेचैनी अनुभव करते है, येलो जोन जिसमें बच्चे कंफ्यूजन महसूस करते हैं और अपने आसपास के बदलावों को समझने में असमर्थ होते हैं,  ब्लू जोन जिसमें बच्चे उदास रहते और कुछ भी करने के लिए प्रेरित महसूस नहीं करते।

चौथा और महत्वपूर्ण जोन  ग्रीन ज़ोन है जहाँ बच्चे अच्छी तरह से विनियमित होते हैं और सीखने के लिए तैयार होते हैं।  हमारा उद्देश्य बच्चों को यथासंभव ग्रीन जोन में रहने में मदद करना है।

अन्वी चौहान ने बताया कि “बच्चों के जोन के अनुरूप उनके साथ एक्टिविटी करने से उन्हें स्वभाव में बदलाव देखा जा सकता है और वो बेहतर महसूस कर सकते हैं। जैसे जो बच्चे सुस्त हो गए हैं उनके लिए मूवमेंट आधारित एक्टिविटी करना, जो बच्चे अधिक उग्र हो गए हैं और अपने आसपास सब पर गुस्सा करने लगे हैं तो उनके लिए कुछ शांत करने वाली एक्टिविटीज की जानी चाहिए जैसे की डीप प्रेशर मसाज, डीप ब्रीदिंग आदि। कभी-कभी बच्चो को बस गले लगाना और उन्हें कडल करने से भी सब ठीक हो जाता है।”

कार्यशाला के दौरान बच्चों के माता-पिता ने कई सवाल पूछे। इन सवालों से उभर कर आया कि भारत में मानसिक स्वास्थ्य और खासतौर पर बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य को लेकर लोगों के मन में संकोच होता है। जिसके चलते लोग अक्सर मनोवैज्ञानिक या काउंसलर के पास नहीं जाते हैं। अन्वी चौहान ने बताया कि कार्यशाला के माध्यम से कई माताओं ने अपनी भी भावनाओं को समझा और यह जाना की बच्चों का भावनात्मक और मानसिक स्वास्थ्य भी शारीरिक स्वास्थ्य जितना ही जरूरी है।

द मदर्स ब्लॉसम्स इंटरनेशनल स्कूल के निदेशक श्री अरुण जोशी और श्रीमती वंदना नागर ने बताया कि, “आज कोविड काल के बाद बच्चों के शारीरिक स्वास्थ्य पर बहुत ध्यान दिया जा रहा है लेकिन उनके सोशल और इमोशनल विकास पर ध्यान केंद्रित नहीं किया जा रहा है। हमारे स्कूल में हमारा उद्देश्य यही रहता है कि हम बच्चों के शैक्षणिक विकास के साथ-साथ उनके सोशल और इमोशनल डेवलपमेंट और सॉफ्ट स्किल्स पर भी काम करें।”

कार्यक्रम में बड़ी संख्या में स्कूल जाने वाले बच्चों के माता-पिता शामिल हुए थे जिन्होंने सेशन समाप्ति के बाद अन्वी चौहान के साथ व्यक्तिगत तौर पर मुलाकात कर अपनी परेशानियों के समाधान ढूंढे।

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