क्या एक स्कूली बच्चा दूसरी बच्ची की हत्या कर सकता है…. अगर हां, तो सोचिए क्यों ??

0

Jai Hind News
– हर पालक समझें कि क्यों आ रहा है बच्चे के स्वभाव में बदलाव
– एक सुरक्षित समाज बनाने का काम अपने-अपने घरों से शुरू करें

इंदौर में 8 सितंबर को एक बहुत ही हृदय विदारक घटना हुई। एक 10 साल की बच्ची को पत्थर से सिर पर वार करके मार डाला गया। बात उठी कि उसकी हत्या 12 साल के लड़के ने की, जो बच्ची के साथ ऑनलाइन गेम खेला करता था। पूछताछ के आधार पर कहा जा रहा है की ”बच्चे ने बताया कि वह एक ऑनलाइन गेम खेलता था, जिसमें दूसरे खिलाडी को मारना होता है। बालिका कई दिनों से अपने दोस्त को ऑनलाइन खेल में हरा रही थी। जिससे बालक मन ही मन में परेशान था। बालक के पास एक चुहिया थी जिसकी कुछ दिनों पहले मृत्यु हो गई थी, बालक को शक था कि चुहिया को उसकी 10 साल की दोस्त ने मारा है। इसी बात का बदला लेने के लिए उसने अपनी 10 साल की दोस्त को मार दिया।”
पुलिस इस मामले की जांच कर रही है लेकिन अब शुरू होता है इस गंभीर घटना पर चिंतन का सिलसिला। क्या इस तरह की घटना हो सकती है, अगर हां तो क्यों? आप इस घटना के लिए किसको जिम्मेदार समझना चाहेंगे? यदि आप इस घटना के लिए बालक को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं तो यह पूरा सच नहीं होगा। क्योंकि बच्चे जो कुछ भी सीखते हैं अपने आसपास के वातावरण, माता-पिता, दोस्त आदि से ही सीखते हैं। आज के परिप्रेक्ष्य इंटरनेट और ऑनलाइन गेम भी बच्चों के लिए समय बिताने का एक सबसे बड़ा साधन है।
इंटरनेट पर एक अजीबोगरीब काल्पनिक दुनिया है, जिसमें अनेक कंपनियां बच्चे को ही नहीं बल्कि बड़ों के मन को भी वश में कर लेती हैं और हम लोग एक काल्पनिक दुनिया का अभिन्न अंग बनने लगते हैं। इसका सबसे ज्यादा असर बच्चों पर पड़ता है क्योंकि माता-पिता का समय और प्रेम न मिलने पर बच्चे इन ऑनलाइन गेम्स में ही आनंद महसूस करने लगते हैं। गेम में अपने प्रतिद्वंदी को मारने पर अच्छा महसूस करते हैं। यदि इन गेम्स को लंबे समय तक इस्तेमाल किया जाए तो यह किसी भी व्यक्ति खासकर बच्चों के मन एवं मस्तिष्क पर गहरा प्रभाव छोड़ सकते हैं और वर्तमान में इसका परिणाम हम रोजाना हो रही घटनाओं में देख रहे हैं।
एक छोटा बच्चा जब चलना और बोलना सीख रहा होता है तो अपने माता पिता से उत्साह पाना चाहता है, लेकिन आज की भागदौड़ में बच्चों को पर्याप्त समय देना माता-पिता के लिए मुश्किल सा होता जा रहा है। अधिकतर माता-पिता अपनी व्यस्तताओं की वजह से बच्चों को समय नहीं दे पाते एवं अनजाने में स्वयं ही बच्चों के हाथों में मोबाइल थमा देते हैं। कुछ समय बाद जब वह बच्चा मोबाइल का आदी हो चुका होता है तो माता-पिता चिंता व्यक्त करते हैं कि हमारा बच्चा मोबाइल में ही अपना समय व्यतीत करता है । इस काल्पनिक दुनिया से बच्चों को बचाने की अत्यंत आवश्यकता है, नहीं तो बहुत देर हो जाएगी।
एक माता पिता होने के नाते हमें क्या करना चाहिए ? यदि हम 4T का फार्मूला अपनाएं तो शायद हम अपने बच्चों को एक सही दिशा दे सकते हैं जिसके वे वास्तविक हकदार है I

1. T for Time-
किसी भी रिश्ते को मजबूत करने के लिए उस रिश्ते को समय देना अत्यंत आवश्यक है। अगर बच्चों के दृष्टिकोण से देखा जाए तो बच्चे अपने माता-पिता और बड़ों से केवल उनका समय चाहते हैं । बच्चों को समय देने का अर्थ केवल उन्हें उपहार देना नहीं होता बल्कि बच्चे ऐसा समय चाहते हैं जिसमें माता-पिता शारीरिक एवं मानसिक तौर पर बच्चों के साथ हों। तो आज खुद से वादा करें बच्चों को टाइम देने का।

2. T for Talk –
बातचीत एक बहुत ही उपयोगी व्यवहार है जिसे हमें बच्चों के साथ हमेशा स्थापित करने का प्रयास करना चाहिए। बातचीत का अर्थ केवल यह नहीं कि हम बच्चों से उनके दैनिक जीवन के बारे में पूछें या उन्हें हमेशा सही या गलत का पाठ पढाते रहें, बल्कि अपने बच्चों से बिना किसी पूर्वाग्रह से बात करें, उनको समझने का प्रयास करें । बच्चों में एक व्यव्हार विकसित करना आवश्यक हैं जिसमें बच्चे अपने मातापिता से रोजाना शाम या रात में दिन में घटित सारी बातों को साझा करें। यह तभी संभव हो पायेगा जब आप भी अपनी रोजाना की दिनचर्या बच्चों के साथ साझा करेंगे, उनको बताएँगे की आज आपको अपने कार्यालय में क्या अच्छा लगा क्या बुरा लगा आदि। ऐसा रोजाना करने से बच्चा भी अपनी रोजाना घटने वाली बातों को साझा करेगा और धीरे- धीरे एक व्यवहार बनेगा। तो चलिए आज आप खुद से वादा कीजिए कि आप अपने बच्चों से रोजाना खूब सारी बातें करेंगे।

3. T for Trust-
आज के इस दौर में हम सब में अपने समाज के प्रति एक अजीब प्रकार का अविश्वास है। जो शायद मौजूदा परिस्थितियों में कुछ हद तक ठीक भी है। लेकिन समाज आप और हम से मिलकर ही बनता है। हमारे दैनिक जीवन में हमारे द्वारा बच्चों के साथ कुछ इस प्रकार का व्यवहार होना चाहिए जिससे बच्चे अपने माता-पिता, आसपास के लोगों एवं समाज के प्रति एक विश्वास की भावना विकसित कर पाए। जब बच्चा अपने माता-पिता पर विश्वास कर पाएगा तो वह अपनी हर बात अपने माता-पिता को बताने में कभी भी संकोच नहीं करेगा। अपने बच्चों पर नज़र रखने की दृष्टि से रोजाना उनके मोबाइल चेक करने से समस्या का समाधान नहीं होगा बल्कि इससे समस्या शायद और बढ़ी हो जाए। तो चलिए आज आप खुद से वादा कीजिए की आप अपने बच्चों पर पूरा विश्वास करेंगे और उन्हें ये जताएँगे भी।

4. T for Train–
बच्चों पर विश्वास करने के साथ-साथ उन्हें कुछ खतरों के प्रति जागरूक एवं प्रशिक्षित करना भी अत्यंत आवश्यक है। विभिन्न प्रशिक्षण जैसे गुड टच, बैड टच क्या होता है… इंटरनेट का उपयोग करने के दौरान सावधानियां, ऑनलाइन दोस्त बनाने के दौरान सावधानीया… बच्चों को प्रेरित करें कि वे अपनी फेवरेट कॉपी में अपना “सुरक्षित दायरा” बनाएं। इस दायरे में बच्चे उन सभी लोगों के नाम/फोटो चिपका सकते हैं जिन पर उनको सबसे ज्यादा विश्वास है। जैसे माता-पिता, दादा-दादी, नाना-नानी, चाइल्ड लाइन आदि। यह सुरक्षित दायरा बच्चों को उनके प्रति किसी भी संदेहास्पद व्यवहार होने पर अपने विश्वासपात्र लोगों से शिकायत करने के लिए प्रेरित करेगा।

यदि आप और हम अपने दैनिक जीवन में इन छोटी-छोटी बातों का ध्यान रखेंगे तो हम अपने बच्चों को सुरक्षित रख सकते हैं । बच्चे सुरक्षित तब होंगे जब समाज सुरक्षित होगा और समाज आप और हमसे ही बनता है। तो चलिए एक सुरक्षित समाज बनाने का काम अपने-अपने घरों से शुरू करते हैं।

– वसीम इकबाल
(डायरेक्टर, चाइल्ड लाइन व संस्था आस)
(लेखक बाल अधिकारों के लिया काम करते हैं और ये उनके व्यक्तिगत विचार हैं)

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here