इसलिए 56 भोग ही लगाए जाते हैं ठाकुर जी को …..

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– 56 भोग के पीछे प्रचलित है भगवान श्रीकृष्ण से जुड़ी पौराणिक कथा
– देवराज इंद्र के अहंकार को तोड़ने और बृज वासियों की रक्षा करने के लिए श्री बालगोपाल ने उठाया गोवर्धन पर्वत और शुरू हो गई परंपरा
Jai Hind News, Indore
सनातन धर्म में कई परंपराएं ऐसी हैं जो साक्षात ईश्वर के स्पर्श और उनकी कृपा का अनुभूति करवाती हैं। इन्हीं में से एक है श्री ठाकुर जी को दिव्य मनोरथ, 56 (छप्पन) भोग अर्पित करने की परंपरा। मंदिरों में कोई अनुषठान हो या घर में कोई शुभ कार्य या फिर तिथि-त्योहार, प्रभु श्री कृष्ण को 56 (छप्पन) भोग अर्पित करने की बड़ी महिमा मानी जाती है।
हालांकि वर्तमान में कई मंदिरों और देवताओं को 56 (छप्पन) भोग अर्पित किए जाते हैं लेकिन मान्यता है कि भगवान श्री कृष्ण को भोग लगाए जाने से ही इस परंपरा का प्रारंभ हुआ था। भगवान श्री हरि विष्णु के श्री कृष्ण अवतार को बालकृष्ण, ठाकुर जी और कन्हैया जैसे कितने ही असंख्य नामों से पुकारा जाता है और उनके भक्त अनन्य आराध्य देव श्री कृष्ण को प्रेम और श्रद्धा से 56 (छप्पन) भोग लगाकर रिझाते हैं।
सर्वप्रथम सिर्फ ठाकुरजी को ही 56 (छप्पन) भोग क्यों लगाए गए और सिर्फ 56 व्यंजन ही क्यों, कम या ज्यादा क्यों नहीं? इसके पीछे भी कुछ कारण है, जो प्रासंगिक कथाओं में विदित हैं।
देवराज इंद्र का अभिमान तोड़ने के लिए प्रभु ने रची थी लीला
छप्पन भोग लगाने के पीछे प्रभु की एक लीला थी, जो देवराज इंद्र का अभिमान तोड़ने के लिए की गई थी। इसकी प्रचलित कथा यह है कि एक बार भगवान कृष्ण ने ब्रज वासियों को पूजन और अनुष्ठान करने तैयारी की तैयारी करते हुए देखा। जिज्ञासा के चलते उन्होंने  मैय्या यशोदा से पूजा की तैयारियों का कारण जानने की चेष्टा की और कहा ‘ये आप सब किनकी पूजा की तैयारियों में लगे हैं।” मैय्या ने उत्तर दिया ‘देवराज इंद्र की, क्योंकि उनके द्वारा की जाने वाली वर्षा से ही धरती पर जल का संतुलन बना रहता है, फसलें उगती हैं, धान, चारा और अन्य पदार्थ मिलते हैं। इसलिए उनकी पूजा, अन्नकूट की तैयारी में लगे हैं।’ यह उत्तर पाकर श्रीकृष्ण ने कहा कि गायें गोवर्धन पर्वत पर चरती है, वहां उन्हें धान मिलता है। इसलिए वो अधिक पूज्यनीय है। हमें गोवर्धन पर्वत की पूजा करना चाहिए।
सबसे छोटी उंगली पर उठाया गोवर्धन पर्वत
प्रभु श्री कृष्ण की इस लीला के चलते ब्रज वासियों ने देवराज इंद्र की बजाय गोवर्धन पूजा करने का निर्णय लिया। देवराज इंद्र ने प्रभु की इस लीला को स्वयं का अपमान समझा और क्रोधित होकर तेज वर्षा शुरू कर दी। मूसलाधार वर्षा के कारण चारों ओर हाहाकार मच गया। मानव जीवन अस्त-व्यस्त हो गया। कुछ ब्रज वासियों ने कन्हैया को कोसना शुरू कर दिया तो कुछ ने सहायता करने की विनती की। भगवान श्री कृष्ण ने अपनी लीला दिखाना शुरू की और मुरली को एक ओर पर अपनी सबसे छोटी उंगली (कनिष्ठा) पर गोवर्धन पर्वत उठा लिया और ब्रज वासियों को परिवार, गाय, बछड़े और अन्य सामान को भी उसकी शरण में बुलाया।
इंद्र देव ने की क्षमा याचना
सभी ब्रज वासियों के गोवर्धन पर्वत और श्रीकृष्ण की शरण में जाने के कारण इंद्र देव का क्रोध और बढ़ा और तेज वर्षा शुरू हो गई। भगवान कृष्ण ने सुदर्शन चक्र को पर्वत के ऊपर रहकर वर्षा की गति नियंत्रित करने के लिए भेजा और शेषनाग को मेड़ बनकर बहते पानी को पर्वत की ओर आने से रोकने के लिए। क्रोध के चलते इंद्र देव ने सात दिनों तक वर्षा करते रहते, तब उन्हें इस बात की अनुभूति हुई कि यह कार्य किसी सामान्य मानव का नहीं है। वे ब्रह्माजी के पास पहुँचे तो उन्होंने कहा कि श्री कृष्ण सामान्य व्यक्ति नहीं, बल्कि स्वयं विष्णु अवतार हैं। उनकी बात सुन इंद्र देव ने वर्षा को रोका और भगवान श्री कृष्ण के पास पहुंचकर क्षमा याचना करते हुए बोले कि ‘क्षमा कीजिए भगवन्… मैं आपको पहचान नहीं पाया। आप दया के सागर हैं, इसलिए मेरी यह भूल क्षमा करें। ‘ श्री कृष्ण ने उन्हें क्षमा किया और सभी को सुरक्षित बाहर निकालते हुए पर्वत को धरती पर रखा।
यह है छप्पन भोग का गणित
सात दिनों तक प्रलय लाने वाली वर्षा हुई, जिसके चलते श्री कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को उठाया और वे इतने दिनों तक निराहार रहे। माता यशोदा उन्हें हर दिन हर पहर भोजन करवाती थीं। यानी एक दिन में आठ बार। सात दिनों तक वे भूखे-प्यासे रहे, इसलिए ब्रज वासियों ने हर दिन के आठ पहर और सात दिन के हिसाब से 56 (छप्पन) अलग-अलग तरह के व्यंजन बनाए और उन्हें खिलाए। तभी से भगवान श्री ठाकुर जी को 56 व्यंजनों के भोग लगाने की परंपरा प्रारंभ हुई।
कमल पुष्प की पंखुड़ियों से संबंधित एक अन्य कथा
मान्यता है कि गौ लोक में प्रभु श्री कृष्ण और राधिका जी कमल पुष्प पर विराजते हैं। कमल की पहली पंक्ति में आठ, दूसरी में सोलह और तीसरी पंक्ति में 32 पंखुड़ियां होती हैं। प्रत्येक पंखड़ी पर प्रमुख सखी और भगवान की विराजने की धारणा है। इसलिए सभी को सम्मुख मानकर छप्पन (छप्पन) भोग लगाए जाते हैं।
गोपिकाओं की मनोकामना पूरी होने की कथा भी प्रचलित
एक अन्य कथा श्रीमद् भागवत की भी प्रचलित है कि गोपिकाओं ने भगवान श्री कृष्ण को पति के रूप में पाने के लिए एक माह तक यमुना में स्नान कर कठिन व्रत करते हुए मां कात्यायनी की अर्चना, आराधना की थी। उनके तप और प्रेम को देखकर श्री कृष्ण ने भी उनकी मनोकामना पूरी होने की सहमति दी। गोपिकाओं का मनोरथ पूरा होने के उपलक्ष्य में गोपिकाओं ने छ्प्पन (56) भोग बनाया और भगवान श्री कृष्ण को भोग लगाया।
ये है छप्पन भोग
मान्यता है कि खाद्य पदार्थों में विभिन्न रसों की छह प्रकार की प्रकृति अथवा स्वाद होता है। कड़वा, तीखा, कसेला, अम्ल, नमकीन और मीठा, इन सभी से मिलकर छप्पन प्रकार के खाने योग्य व्यंजन बनाए जा सकते हैं। अर्थात ये सभी मिलाकर छप्पन प्रकार के भोग बनाए जा सकते हैं यानी जो भी हम बना सकते हैं, सभी प्रकार के भोग भगवान को अर्पित किए जा सकते हैं। कथाओं में छप्पन भोग में निम्न खाद्य व पेय पदार्थों का उल्लेख किया गया है-
1. भक्त (भात)
2. सूप (दाल)
3. प्रलेह (चटनी)
4. सदिका (कढ़ी)
5. दधिशाकजा (दही शाक की कढी)
6. सिखरिणी (सिखरन)
7. अवलेह (शरबत)
8. बालका (बाटी)
9. इक्षु खेरिणी (मुरब्बा)
10. त्रिकोण (शर्करा युक्त)
11. बटक (बड़ा)
12. मधु शीर्षक (मठरी)
13. फेणिका (फेनी)
14. परिष्टश्च (पूरी)
15. शतपत्र (खजला)
16. सधिद्रक (घेवर)
17. चक्राम (मालपुआ)
18. चिल्डिका (चोला)
19. सुधा कुंडलिका (जलेबी)
20. धृतपूर (मेसू)
21. वायुपूर (रसगुल्ला)
22. चन्द्रकला (पगी हुई)
23. दधि (महारायता)
24. स्थूली (थूली)
25. कर्पूरनाड़ी (लौंगनाड़ी)
26. खंड मंडल (खुरमा)
27. गोधूम (दलिया)
28. परिखा
29. सुफलाढ़या (सौंफ युक्त)
30. दधिरूप (बिलसारू)
31. मोदक (लड्डू)
32. शाक (साग)
33. सौधान (अधानौ अचार)
34. मंडका (मोठ)
35. पायस (खीर)
36. दधि (दही)
37. गोघृत (गाय के दूध का घी)
38. हैयंगपीनम (मक्खन)
39. मंडूरी (मलाई)
40. कूपिका (रबड़ी)
41. पर्पट (पापड़)
42. शक्तिका (सीरा)
43. लसिका (लस्सी)
44. सुवत
45. संघाय (मोहन)
46. सुफला (सुपारी)
47. सिता (इलायची)
48. फल
49. तांबूल
50. मोहन भोग
51. लवण
52. कषाय
53. मधुर
54. तिक्त
55. कटु
56. अम्ल।

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