Jai Hind News, Indore
हिंदू धर्म में ‘कर्ण वेध संस्कार” अथवा परोजन संस्कार का विशेष महत्व है। सोलह संस्कारों में इसकी गणना करते हुए लिखा गया है ‘कृतचूडे च बाले च कर्णवेधो विधियते।” अर्थात् जिसका चूड़ाकरण हो गया हो, उसका कर्णवेध किया जा सकता है। बालक अथवा बालिका की दीर्घायु और वैभव की वृद्धि की मनोकामना और धारणा के साथ इस संस्कार को पूरा कर यथाशक्ति सुवर्ण कुंडल धारण करवाया जाता है। अलग-अलग परिवारों, समाजों में इसे अलग-अलग विधि के साथ पूरा किया जाता है।
धार्मिक और ज्योतिष मान्यताओं का विशेष महत्व
चिकित्साशााी आचार्य सुश्रुत ने लिखा है कि बालक अथवा बालिका की रक्षा और आभूषण के लिए शुभ नक्षत्र में मांगलिक कृत्य एवं स्वस्ति वाचन कर दोनों कान छेदे जाना चाहिए। बालक का पहले दाहिना और कन्या का पहले बायां कान छेदा जाता है। बालक के कान में सूर्य की किरण के प्रवेश के योग्य और बालिका के कान में आभूषण पहनने के योग्य छिद्र होना चाहिए।
रोग, व्याधि समाप्त होने संबंधी मान्यताएं
कुमार तंत्र चक्रपाणि में ”कर्णव्यधे कृतो बालो न ग्रहैरभिभूयते। भूष्यतेऽस्य मुखं त्समात् कार्यस्तत् कर्णयोर्व्यध:” में इसकी व्याख्या की गई है कि कर्ण वेधन संस्कार से बाल ग्रहों से बालक की रक्षा होती है और कुंडल आदि धारण करने से शोभा बढ़ती है। यह भी मान्यता है कि इससे राहु- केतु संबंधी प्रभाव समाप्त होते हैं और रोग, व्याधि समाप्त कर स्वस्थ रहने में सहायता मिलती है। बताया जाता है कि विधिपूर्वक कर्ण छेदन जन्म से दसवें, बारहवें, सोलहवें दिन या छठे, सातवें, आठवें महीने में किया जा सकता है।
स्वास्थ्य लाभ की धारणाएं
धार्मिक मान्यताओं से हटकर कर्ण छेदन करवाना आज फैशन का हिस्सा बन चुका है। कई लोग किसी भी उम्र में, किसी भी दिन, किसी भी समय कर्ण छेदन करवा लेते हैं। न ही तिथि, वार देखा जाता है और न ही मुहूर्त, लेकिन वर्षों पुरानी इस परंपरा के कई स्वास्थ्य लाभ भी बताए जाते हैं। माना जाता है कि इससे सुनने की क्षमता, आंखों की रोशनी बढ़ती है और तनाव कम रखने में मदद मिलती है। बुरी शक्तियों का प्रभाव कम होता है और लकवा आदि का खतरा भी कम हो जाता है। मस्तिष्क में रक्त संचार समुचित होता है जिससे दिमाग की शक्ति बढ़ती है और हर्निया जैसी बीमारी खत्म होने की बात भी कही जाती है।
मान्यता यह भी है …
वैज्ञानिकों और स्वास्थ्य विशेषज्ञों के मुताबिक जिस जगह कान को छेदा जाता है वहां दो जरूरी एक्यूप्रेशर पॉइंट्स मौजूद होते हैं। मास्टर सेंसोरियल और मास्टर सेरेब्रल। एक्यूपंक्चर में स्पष्ट किया गया है कि इससे सुनने की क्षमता बढ़ती है और घबराहट कम होने के कारण मानसिक शक्ति बढ़ती है। कानों के निचले हिस्से का संबंध पांचन क्रिया से भी बताया जाता है, यहां छिद्र करने से पाचन क्रिया ठीक होती है और मोटापा नहीं बढ़ता।