लंकेश के पास था पहला मानव रोबोट…. दंग रह जाएंगे आप दशानन की खूबियां जानकर

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Jai Hind News
Indore
महाबलशाली, प्रकाण्ड पण्डित, महाशिवभक्त, चारों वेदों के ज्ञाता, महान संगीतज्ञ, शिवतांडव स्त्रोत के रचियता ,ब्रह्मा के मानस पुत्र महर्षि पुलस्त्य के पौत्र लंकापति दशानन रावण केवल राक्षस ही नही, अपितु एक उन्नत ब्राह्मण विद्वान भी था. महर्षि वाल्मीकि ने रावण को महात्मा कहा था, लंका में प्रातःकाल पूजा, अर्चना, शंख और वेद ध्वनियों से वातावरण गूंज उठता था। लंका पति रावण कुशल प्रशासक था. वह अपनी प्रजा का विशेष ध्यान रखता था, रामायण में अशोक वाटिका जैसे सुंदर बाग, नदियों पर बनाये गए सेतु, आम जनता के लिए आधुनिक वैज्ञानिक सुविधा प्रजा के प्रति उनकी कर्तव्यनिष्ठा का प्रमाण देते है। वह ज्ञानी और गोपनीय विद्याओं (तंत्र,मंत्र,यंत्र) का ज्ञाता था।
दशानन एक कुशल राजनीतिज्ञ और वास्तुकला का मर्मज्ञ कहा जाए तो अतिशयोक्ति नही होगी। रावण के पास लड़ाकू विमानों से लेकर समुद्री जलप्रौतो के अनेक बेड़े थे। दूरसंचार यंत्र भी लंका में उपलब्ध थे। श्रीराम और दशानन के मध्य युद्ध वस्तुतः उस युग का विश्वयुद्ध ही था जिसमें आधुनिक अस्त्रों का जमकर उपयोग हुआ था। अदृश्य होना और काल्पनिक कृति का निर्माण करना उन्नत वैज्ञानिक विधि से संभव है।रावण एक विद्वान और अनेक पुस्तको का रचयिता था। तांडव स्त्रोत, अंकप्रकाश, इंद्रजाल, कुमार त्रत, प्राकृत कामधेनु, शिव स्त्रोतों की रचना रावण ने ही की थी। रावण न केवल चारों वेदों का ज्ञाता था।अपितु उनपर टिकाए भी लिखी थी।

रावण के पास था पहला मानव रोबोट

वेदों का सस्वर उच्चारण वाचन की पद्धति रावण द्वारा ही प्रारम्भ की गई।संगीत के साथ साथ ज्योतिषी, धर्म, कर्मकांड का अध्येता था। उन्होंने 24 ग्रंथो की रचना की थी। महान संगीतज्ञ रावण ने रावण वीणा को स्थापित किया था। रावण ने वैज्ञानिक के तौर पर प्रक्षेपास्त्र ओर ब्रह्मास्त्र, जिन्हें हम आधुनिक जीवन मे परमाणु अस्त्र भी कह सकते है, का बहुत उपयोग किया था। लंका के द्वार पर “दारू पंच अस्त्र ” स्थापित था। जिसका अविष्कार भृगुनन्दन दैत्य गुरु शुक्राचार्य ने किया था और जिसे रुद्र कीर्ति मुख का नाम दिया गया था। इस यंत्र की विशेषता यह थी कि शत्रु की जो भी गतिविधि थी उसका पूरा चित्र उस यंत्र पर उभर आता था और उसके मुख से आग का गोला निकलता था। शत्रु का संहार करता था। यह कीर्ति मुख संभवतः यंत्र मानव रोबोट था।

कोई नहीं मार सकता था रावण को
भगवान ब्रहमदेव की घोर तपस्या कर वह ऐसे वरदान पा चुका था कि भगवान विष्णु के अलावा किसी के द्वारा मारा ही नही जा सकता था। सनातन मान्यता के अनुसार कांगड़ा जिले में स्थित पालमपुर से सोलह किलोमीटर दूर बैजनाथ के प्रसिद्ध शिवमंदिर में रावण ने अनुष्ठान कर एक के बाद एक अर्थात अपने दस शिरो को यज्ञवेदी में आहुति के रूप में भगवान शिव को समर्पित कर दिए थे भगवान शिव ने उनके सभी शिरो को वापस कर उनको अद्वित्य शक्तिशाली बना दिया था।

रोज विमान से शिव दर्शन को जाता था लंकेश
परम शिव भक्त रावण पुष्पक विमान से प्रतिदिन कैलाश पर्वत पर शिव दर्शन को जाता था। रामेश्वर स्थापना में रावण का आचार्यवत प्राप्तकर भगवान श्रीराम ने पुजाकर्म सम्पन्न करवाया था। जब पूजन सम्पन्न हुआ तो रावण ने कहा है राम आपका मनोरथ पूर्ण हो। रावण के मंत्री ने कहा है राजन यह आप पर विजय प्राप्त करने का अनुष्ठान था तो रावण ने कहा मैंने पुरोहित के रूप में अपने यजमान को मनोरथ सिद्धि का आशीर्वाद दिया है। जब श्री राम लंका पर विजय अभियान को आतुर दिखेंगे, तब शत्रुवत व्यवहार करूंगा।

6000 मीटर गहराई का कुआं है आज भी

इसी प्रकार लक्ष्मण के घायल होने पर लंका के राजवैध सुषेण को इलाज करने की अनुमति भी रावण ने ही दी थी। हनुमान को संजीवनी बूटी को ले जाते वक्त भरत द्वारा रोकने पर हनुमान संजीवनी बूटी को आसमान मे ही स्थापित कर भरत से मिले। भरत ने एक तीर में ही बैठाकर हनुमान को तुरंत रणक्षेत्र में भेजने का अनुरोध भी किया था। लक्ष्मण के घायल होने की सूचना जब उर्मिला को दी गई तो उन्होंने कहा मुझे पता है, उन्हें पूरे युद्ध का विवरण लाइव पता था। अहिरावण का पाताललोक, जो 6000 मीटर गहराई का कुआं है आज भी मौजूद है। वहाँ रावण के एयरपोर्ट के निशान आज भी मौजूद है।

6 आधुनिक विमान थे रावण पास

रावण पास 6 उच्च तकनीकी वाले आधुनिक विमान पुष्पक विमान प्रकाश की गति से भी चलने वाला बहुउपयोगी विमान था। जिसे कभी जम्बोजेट तो कभी हेलीकाप्टर के रूप में उपयोग किया जाता था। घातु विज्ञान में भी लंका को विशेषज्ञता प्राप्त थी, लंका दहन की जली हुई कितनी ही घातु आज उपलब्ध नही है। औषधि विज्ञान भी उस समय चरम पर था। लक्ष्मण को एंटीसेप्टिक विषभरनी नामक संजीवनी बूटी के साथ तीन अन्य औषधियों से स्वस्थ किया गया। 72 घंटे चले युद्ध के अंतिम समय रावण के अंत के समय राम ने 11.2 किलोमीटर दूर से पानी मे विला झील में खड़े होकर 4364 फीट ऊँचाई पर खड़े रावण को पहले अग्निशास्त्र का उपयोग कर रावण की नाभि में स्थित अमृत को सुखा दिया था पश्चात रावण को विश्वामित्र द्वारा प्रदान किये ब्रह्मास्त्र से मारा गया था।

लेखक – हेमंत जोशी
(लेखक पुरातन युग मे विज्ञान के अस्तित्व पर शोध कर रहे हैं। ये विचार लेखक के स्वयं के हैं)

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